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Monday, October 13, 2014

जन्नत बना जहन्नुम



जम्मू कश्मीर में बाढ़ से लोगों की मौत ने 55 सालों के बाद वो दर्दनाक मंजर सामने लाया जिसको सुधारना मानवीय हाथों में तो नहीं...ये पहली बार नहीं हुआ...कुदरत का कहर यहां हमेंशा 55-54 सालों में होता रहा है ...(लगभग 250-300) मौत की चीखों ने लोगों को हिला कर रख दिया.. लोगों ने अपने आप को बचाने के लिए हर उस जगह का सहारा लिया जहां उनकी जान बचने की कोई एक उम्मीद नजर आई... ऐसे में केन्द्र सरकार जिंदगी बचाने निकली और सेना के तीनों टुकड़ीयो को मिशन मेघदूत के तहत भेजा। फौज ने अपनी जान पे खेल कर कई जानों को बचाया...दूसरे राज्यों से रोजी-रोटी के लिए आए लोगों के यहां मानों मातम छा गया... किसी से भी कोई सम्पर्क नहीं हो रहा था परिजन किसी अनहोनी के दर्द से डर रहें थे...। किसी का मोबाईल नहीं लग रहा था आनें-जानें का रास्ता भी बंद था पुल टूट गए थे; ऐसे में सेना नें 16 घंटे में पुल को बना दिया।
 कई लोग पानी में फंसे थे... कई ने पत्थरों का सहारा लिया और कई ने घर के तीसरे मंजिल को सहारा बनाया। ऐसे में कुदरत ने किसी फरीयादी की फरियाद सुनी और बारिश की बुदें कम होती चली गई...नदी का पानी भी ठहर सा गया । और अब राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के पास नई कठीनाईयां सामने आई जहां बीमारी और भूखमरी नें लोगों के हौसले तोड़ चुकी थी वही सरकार इन मुसीबतों से कैसे लड़ेगी ये देखने वाली बात थी ।ऐसे में कईलोग मसीहें के रुप में सामने आए और लोगों कि मदद के लिए हाथ बढ़ाया।
लिखा है किस्मत में जख्म तो मरहम को याद क्या करना

जहां के हाकिम हो बेरहम वहां जिंदगी के लिए फरीयाद क्या करना....