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Wednesday, March 9, 2011

अरुणा की कहानी


अंर्तराष्तीय महिला दिवस के ठीक एक दिन पहले (07/03/2011) सुप्रिम कोर्ट(न्यायमुर्ति मार्कंडेय काटेज और श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ) ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अरुणा रामचंद्र शानबाग कि दया मृत्यु की याचिका को खारिज कर दिया । आप सब को ये पता होगा, साथ ही ये भी पता होगा की ये याचिका उनकी दोस्त (लेखिका)पिंकी विरानी (जिन्होने Aruna’s story के नाम से अरुणा पर किताब लिखी हैं) इन्होने ही दिसम्बर 2009 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी, जिनके वकील शुभांगी टुल्ली थे (टुल्ली ने फैसले को महत्वपूर्ण बताया, उन्होने कहा कि सुप्रिम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु कि याचिका तो खारिच कर दी लेकिन पैसिव यूथनेशिया को स्वीकृति दे दी हैं)। याचिका में इच्छामृत्यु मांगी गई थी, क्योंकि इज्जत से जीना सभी का अधिकार हैं (2009 में चीफ जस्टिस के. जी. बालकृष्णन , जस्टिस ए.के.गांगुली व बी. एस. चौहान की बेंच ने ये उसी समय कहा था की भारतीय कानून के तहत हम किसी को मरने की इजाजत नहीं दे सकते)।
जब मैनें ये ऐतिहासिक फैसला सुना तो मुझे भी ये कहानी जान कर लिखने की इच्छा हुई मगर कुछ प्रश्न मेरे मन के अंदर चल रहे थे जैसे –कुत्ते के सिकड़ के साथ अप्राकृतिक रुप से दुष्कर्म क्यों किया गया? कुत्ते का सिकड़ कहा से आया? जहॉ दुष्कर्म की कोशिश हुई वहॉ कोई बचानें क्यों नहीं आया? दुष्कर्म के बाद जब अरुणा कोमा में चली गई तो दुष्कर्मी (सोहनलाल वाल्मीकि) को पहचाना कैसे गया ? लेखिका ने 34 साल के बाद क्यों याचिका दायर की ? 2009 में दायर की गई याचिका पर फैसला आने में 2 साल का समय लग गया तो घटना वाले समय भी समय लगा होगा फिर ओरोपी को 7 साल की ही सजा क्चों ? जबकी अरुणा की हालात का पता उसी समय लग गया था? सोहन लाल का क्या हुआ ?
जब मैं ये कहानी लिखने लगा तो कई बार इस कहानी को लिखा लेकिन फाड़ के फैंकना पड़ा आत्मसंतुष्टी नहीं मिली फिर काफी रिसर्च के बाद कुछ सवालों के जवाब मैं खोच पाया । जो इस प्रकार है, अरुणा ने सन् 1966 में मुबई के किंग्स एडर्वड मेमोरल(केईएम) हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी से करियर की शुरुआत की। अस्पताल की डॉग रिसर्च लेबोरेटरी में सोहनलाल कार्यरत था. वो कुत्तों के लिए दिया जाने वाला मांस खा जाता था, अरुणा उसे मना करती थी, सोहनलाल इससे आहत होता था,धीरे-धीरे उसका गुस्सा बढ़ने लगा था जिस कारण वो अरुणा पर नजर रखने लगा, 37 साल पहले 23 साल की अरुणा हंसने खेलने वाली लड़कीयों में थी, उसकी शादी भी होने वाली थी । लेकिन 27 नवम्बर 1973 को अपनी डयूटी खत्म कर कपडे़ बदलने के लिए चेंजिंग रूम में पहुंची। सोहन वहां पहले से ही घात लगाकर बैठा था, उसने अरुणा को दबोच लिया, कुत्ते के गले की चेन से अरुणा के गले पर कस दीया । इसके बाद यह जानने के बाद के वह मासिक धर्म से है उसने अरुणा के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म कि कोशिश की। चेन के कसाव से अरुणा के दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें फट गईं। उसकी आंखों की रोशनी चली गई, शरीर को लकवा मार गया, अरुणा बोल भी नहीं पा रही थी। उसकी दरिंदगी की शिकार अरुणा अस्पताल में पड़ी रही। अगले दिन अस्पताल के स्टाफ को अरुणा बुरी हालत में अस्पताल में मिलीं, लेकिन तब तक अरुणा कोमा में जा चुकी थीं, वक्त बीतने के साथ रिश्तेदारों ने भी अरुणा से मुंह मोड़ लिया। अरुणा को कोमा में पहुंचाने के आरोप में सोहन लाल को कुछ दिन बाद ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अदालत में मामला चला और सोहनलाल पर अरुणा की हत्या की कोशिश और कान की बाली लूटने का आरोप लगा। हैरानी की बात ये है कि उसपर बलात्कार की कोशिश का आरोप तक नहीं लगा, पुलिस ने ऐसी कोई धारा नहीं लगाई। लेकिन अरुणा आज भी 37 साल से प्रत्येक दिन मरती है। अरुणा को इस हाल में पहुंचाने वाले सोहनलाल को कोर्ट ने मात्र सात साल की सजा सुनाई। सोहन ने सजा काटी और मुक्त होकर मुंबई छोड़कर चला गया। घटना के समय से ही उसका परिवार गायब है। बाद में सोहनलाल ने दिल्ली के एक अस्पताल में नौकरी कर ली। हालांकि एड्स के चलते उसकी मौत हो गई।
आप भी KEM अस्पताल के वार्ड नंबर चार के कमरे में अरुणा को मरणावस्था में देख सकते हैं। शानबाग का वजन बहुत कम हो गया है, हड्डियां लच्चर अवस्था में हैं, कलाइयां अंदर की ओर मुड गई है, दांत नष्त हो गए है, उन्हे सिर्फ तरल भोजन दिया जाता हैं वो लगातार बेहोश रहती है, दिमाग काम नहीं करता ,सुन – बोल नहीं सकती। फिर भी 37 वर्षों से अस्पताल ने इनकी जिस भाव से सेवा की हैं वो सराहनीय हैं इसके लिए अस्पताल के डीन डॉक्टर संजय ओक (1986 से 88 तक इसी कॉलेज के छात्र थे। अक्टूबर 2008 में पदभार संभाला) अस्पताल की मेट्रन अर्चना जाधव , नीला सावंत और सभी नर्सो और डाक्टरों को सलाम ! साथ ही जज के फैसले को सलाम ! जिन्होने एसी सुझबुझ दिखाई जिससे इस केस की इज्जत भी रही साथ ही आने वाले समय में भी कोई ओर इस तरह की केस में फायदा नहीं उठा पाए इसका ख्याल ऱखा।