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Saturday, January 29, 2011

गांव की ओर छोटा पर्दा

छोटे पर्दे ने टीवी सीरियल्स के स्वरूप को बदल दिया है...सारे चैनल गांव की ख़ुशबू समेटने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे याद आता है जब मेरे घर से सिर्फ़ दूरदर्शन का रिश्ता जुड़ा था, हम उसी में ख़ुश थे...। रामायण, महाभारत, हमलोग, बुनियाद, मालगुडी डेज़, ये जो है ज़िंदगी, रजनी, हीमैन, वाह जनाब, भारत एक खोज, विक्रम बैताल, टर्निंग प्वॉइंट, अलिफ़ लैला, शाहरुख़ ख़ान का फौजी, देख भाई देख ने देशभर में ख़ास दर्शक वर्ग तैयार किया।
लेकिन, कई चैनलों ने मेरे घर का रुख़ किया...लोगौं ने अपने घर रईसजादों को देखा, सास का बहू के ख़िलाफ़ साज़िश को सीखा, एक पत्नी की कई शादियां देखी, लाखों की शॉपिंग देखी। शहरीकरण ने लोगों का घरों से रिश्ता जोड़ा।
इस टीवी ड्रामे के बीच Colors' TV बालिका वधू सीरियल लेकर आया, जिसने बाल विवाह का मुद्दा उठाया...इस सीरियल ने लोकप्रियता की हदों को तोड़ डाला, नतीजा ये हुआ कि सारे चैनल गांव से जुड़ी प्रथा दिखाने की कोशिश में जुट गए...प्रथा से याद आया Colors' TV पर दिखाया जाने वाला Rishton se badi pratha ने लड़कियों के दिलों में डर ला दिया...मेरे साथ काम करने वाली भावना और मुग्धा का मानना हैं कि ,ऐसे सीरियल उस भाई या पिता को बढ़ावा देंगे जो उस तरह की सोच रखते हैं।
छोटे पर्दे से बगिया का निवेदन है कि होड़ में ऐसा कुछ न दिखाएं जिससे समाज पर बुरा असर हो।